ऐ श्याम ! तेरी बंसरी ने क्या सितम किया ?
तनाका रहा न होश मेरे मनको हर लिया ||
वंशी की मधुर टेर सुनी प्रेम-रस-भरी |
ब्रज नर लोक-लाज कम-काज ताज दिया ||
नभ में चढ़े विमान खड़े देवगण सुने |
मुनियों का चूता ध्यान प्रेम-भक्ति-रस पिया ||
पशुओ ने तजी घास पंची मौन हो रहे |
जमुना का रुका नीर पवन धीर हो गया ||
ऐसी बजाई बंसरी सब लोक वश किया |
"ब्रहमानंद" दरस दीजिये, मोहे रस के रसिया ||
0 comments:
Post a Comment