प्रेम जीवन का विशुद्ध रस । प्रेम माधुरी जी का सान्निध्य जंहा अमृत के प्याले पिलाए जाते है ।प्रेम माधुर्य वेबसाइट से हमारा प्रयास है कि इस से एक संवेदना जागृत हो ।

Tuesday, January 24

ओ साँवरिया!



कैसे काटूं ये कोरी  उमरिया
ओ सांवरिया!
अब तो अधरों पे धर ले बनाके बाँसुरिया
ओ सांवरिया!

राह तकते नयन मेरे पथरा गये
आ गये सामने तुम तो घबरा गये

लाज के मारे मर ही न जाए गुजरिया
ओ साँवरिया!

बिन तेरे ब्रज की गलियाँ भी सूनी लगे
है जरा-सी मगर पीर दूनी लगे

फोडने आ जा पनघट पे छलके गगरिया
ओ साँवरिया!

रास संग गोपियों के रचाई नहीं
नींद कितने दिनों से चुराई नहीं

आ जा जमना किनारे पुकारे बावरिया
ओ साँवरिया!
कर दे बेसुध मोहे मुरली की तान से
जान चाहे चली जाए फिर जान से
आके ले ले ओ निर्मोही मोरी खबरिया
ओ साँवरिया!

बाग में पेड पर पक गये आम हैं
दूर मेरी नजर से मेरे श्याम  हैं

द्वार पे है लगी कब से प्यासी नजरिया
ओ सांवरिया!

जीत पाया नहीं जो हृदय श्याम का
राधिके! रूप तेरा ये किस काम का

मुँह चिढाए मोहे सूनी-सूनी सजरिया
ओ साँवरिया!

कैसे काटूं ये कोरी उमरिया
ओ साँवरिया!
अब तो अधरों पे धर ले बनाके
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