प्रेम जीवन का विशुद्ध रस । प्रेम माधुरी जी का सान्निध्य जंहा अमृत के प्याले पिलाए जाते है ।प्रेम माधुर्य वेबसाइट से हमारा प्रयास है कि इस से एक संवेदना जागृत हो ।

Sunday, January 29

माँ यसोदा राधा जी से पूछती है





माँ यसोदा राधा जी से पूछती है:- अरी राधा, तेरा नाम क्या है? किस पिता की बेटी है, कोन तेरी माँ है? तेरे जैसी सुंदर सलोने रूप वाली कन्या को जिस माँ ने अपनी कोख में रखा, वह कोख धन्य है और जिस घर में तुने अवतार लिया है, वेह घर धन्य है! तेरे माता-पिता दोनों धन्य-धन्य है और जिस घर तुने अवतार लिया है वह घर धन्य है, ऐसा कहकर माँ यसोदा राधा की मोहिनी छवि को देखती रही! राधा ने कहा, मैं वृषभानु की पुत्री हुईं और माँ तो तुमको जानती भी है; उनका तो यमुना तट पर तुमसे कई बार मिलन हुआ है, क्या तुम पहचानती नही हो? माँ यसोदा ने कहा-अच्छा , ऐसा है क्या, तू कहती है की मैं उनको जानती हु- अरे वह तो बड़ी छिलान( कुलटा-वस्तुत: प्यार की गाली) है (भला उसे कोन नहीं जानेगा ?) और तुम्हारा पिता वृषभानु वह भी सब दिन का लंगर(धृष्ट, सैतान ) है - और इस पारकर यसोदा हस्ती हुई राधा के मेहर-मेहरी को प्यार भरी गाली देती है ! राधा ने कुछ डरते और कुछ संकोच में पुचा- क्या बाबा( वृषभानु ) ने तुमसे कोई  धृष्टता की है ? अरे वृषभानु इतने समर्थ नहीं , देखे मैंने ( अर्ताथ वृषभानु मेरे साथ इतनी  धृष्टता करने की हिम्मत नही कर सकते ) और इतना कहकर उसने हँसते हुए राधा को गले से लगा लिया और कहा- आ राधा! तेरी चोटी कर दूँ ! सूरदास जी कहते है की यसोदा हँसते हुए राधा से कहने लगी की हम और तेरी मेहरी तो दोनों पक्की सहेली है !
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