प्रेम जीवन का विशुद्ध रस । प्रेम माधुरी जी का सान्निध्य जंहा अमृत के प्याले पिलाए जाते है ।प्रेम माधुर्य वेबसाइट से हमारा प्रयास है कि इस से एक संवेदना जागृत हो ।

Thursday, May 31

लाडली अद्भुत नजारा तेरे बरसाने में है


लाडली अद्भुत नजारा तेरे बरसाने में है ..
लाडली अब मन हमारा तेरे बरसाने में है
बेसहारो को सहारा तेरे बरसाने में है ..

लाडली अद्भुत नजारा तेरे बरसाने में है ..
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे श्री राधे 

राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे श्री राधे
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे श्री

 राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे श्री राधे

झांकिया तेरे महल की कर रहे सब देव गण..
आ गया बैकुंठ द्वारा ..तेरे बरसाने में है
 राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे श्री राधे

हर लता  हर डाल पर तेरी दया की एक नजर ..
हर घडी यशुमति दुलारा..तेरे बरसाने में है
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे श्री राधे

अब कहाँ  जाऊ  किशोरी तेरे दर को छोड़ कर..
मेरे जीवन का सहारा..तेरे बरसाने में है
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे श्री राधे

मै भला हु  या बुरा हु पर तुम्हारा हु सदा..
अब तो जीवन का किनारा ..तेरे बरसाने में है
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे श्री राधे
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे श्री राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे श्री राधे
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे श्री राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे श्री राधे
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Saturday, May 12

मेरी माँ





जब आंख खुली तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था...
उसका नन्हा सा अंचल मुझ को भूमंडल से प्यारा था...
उसके चहरे की झलक देख चेहरा फूलो सा खिलता था...
उसके अंचल की एक बूंद से मुझे को जीवन मिलता था....
हाथो से बालो को नोचा...पैरो से खूब प्रहार किया...
फिर भी उस माँ ने पुचकारा हमें जी भर के प्यार किया...
"मै उसका रजा बेटा था..आंख का तारा कहती थी..
मै बनू बुडापे में उसका एक सहारा कहती थी...


उंगली को पकड़ चलाया था पढ़ने विद्यालय भेजा था...
मेरी नादानी को भी निज अंर्तमन में सदा सहेजा था...
मेरे सरे प्रशनो का वो फौरन जवाब बन जाती थी..
मेरे राह के कांटे चुग खुद गुलाब बन जाती थी....
माँ हंसती है तो धरती का जर्रा जर्रा मुस्काता है...
मन मेरे घर के दीवारों में चंदा की सूरत है...
पर मन के इस मंदिर में माँ की मूरत है ...
माँ सरस्वती..लक्ष्मी देवी..अनुसूया सीता है.....
माँ पावनता में राम चरित मानस..भगवत गीता है...
अम्मा मुझे तेरी हर बात वरदान से बड़ कर लगती है...
हे माँ मुझे तेरी सूरत भगवन से बड़ कर लगती है...
सारे तीर्थ के पुण्य जंहा मै उन चरणों में लेटा हूँ...
जिन के कोई संतान नही मै उन माओ का बेटा हूँ....
हर घर में माँ की पूजा हो ऐसा संकल्प उठाता हूँ ...
दुनिया की हर माँ की चरणों में ये शीश झुकाता हूँ..
यह बात तब कि है जब भगवान को दिन-रात कायनात का निर्माण करते हुए छठा दिन था और वो "मां" का निर्माण कर रहे थे। जब वे अपने काम में तल्लीन थे, तभी उनके सामने एक देवदूत आ खड़ा हुआ और उसने उनसे पूछा, "आप इस कृति को बनाने में इतना वक्त क्यों लगा रहे हैं?"  तब भगवान ने जवाब दिया, "दरअसल मुझे मेरी इस रचना को अनेक विलक्षणताओं के साथ बनाना है। जैसे, इसे सदैव निर्मल रहना है, साथ ही इसके अंग-अंग से सजीवता झलकनी चाहिए। इसके शरीर में 200 गतिमान हिस्से हैं। यह एक रचना होगी, जो थोड़ी सी चाय-कॉफी और बचे हुए खाने के सहारे भी जीवित रह सकेगी।"  "इसकी गोद इतनी विशाल होगी कि जिसमें तीन शिशु एक साथ आ सकें...। जिसके एक चुंबन से छिले हुए घुटने से लेकर टूटे हुए दिल तक , यानी सब कुछ ठीक हो जाएगा। इसे मैं छह हाथ भी देने जा रहा हूं।"  इन विलक्षण विशिष्टताओं को सुनकर दंग देवदूत बोला, "क्या आप इसे छह हाथ देने जा रहे हैं, पर इसकी क्या आवश्यकता?"  भगवान ने जवाब दिया, "अरे. असल समस्या ये छह हाथ नहीं हैं, मैं तो तीन जोड़ी आंखों को लेकर चिंतित हूं जो हर मां के पास होनी ही चाहिएं।" देवदूत ने कहा, "और तीन जोड़ी आंखें होने पर ही मां का मानक मॉडल तैयार होगा?"  भगवान ने हां में सिर हिलाया और बोले, "तुम बिल्कुल ठीक समझ रहे हो। एक जोड़ी आंखें बंद दरवाजे से भी झांकने में सक्षम होंगी, ताकि वह अपने बच्चों से पूछ सके कि वे क्या कर रहे हैं, जबकि वह अपनी इन आंखों के कारण पहले ही जानती होगी कि उसके बच्चे क्या कर रहे हैं।"  "आंखों की दूसरी जोड़ी सिर के पीछे होगी, ताकि वह हर उस बात को जान सके जिसे उसको जानने की जरूरत है और लोग सोच भी न सकें कि इसकी जानकारी उसे हो भी सकती है।"  "और तीसरी जोड़ी आंखें उसके माथे पर होंगी ताकि वह राह से भटके अपने बच्चों पर नजर रख सके और बगैर एक शब्द कहे अपने बच्चों से कह सके कि वह उनसे कितना प्यार करती है।"  अब देवदूत ने भगवान को रोकने की कोशिश की, "भगवान, आपने आज दिन भर में काफी काम कर लिया है। आप काम खत्म करने के लिए कल का इंतजार भी तो कर सकते हैं।"   भगवान ने प्रतिरोध किया, बोले, "नहीं, मैं नहीं कर सकता। मैं अपनी इस कृति को पूरा करने के बहुत करीब हूं जो मेरे दिल के काफी करीब है। यह एक ऎसी कृति है, जब वो बीमार होगी तो अपना इलाज और देखभाल खुद करेगी। जिसे बहुत कम संसाधनों में छह लोगों का पेट पालना आता होगा।" अब देवदूत भगवान के करीब आ गया और उसने उस औरत को छुआ, चौंककर बोला, "लेकिन भगवान आपने तो इसे बहुत ही कोमल बनाया है।"  भगवान सहमत होते हुए बोले, "हां, यह बहुत ही कोमल है, लेकिन मैंने इसे बहुत कठोर भी बनाया है। तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि यह क्या-क्या सहन कर सकती है और क्या-क्या काम कर सकती है।" "तो क्या यह सोच भी सकेगी?" देवदूत ने पूछा।  अब भगवान ने जवाब दिया, "यह न केवल सोच सकेगी, बल्कि तर्क दे सकेगी, समस्याओं को सुलझा सकेगी।"  तभी देवदूत ने कुछ नोटिस किया। वह भगवान की उस कृति तक पहुंचा और उसने उसके गालों को छुआ और तुरंत बोला, "अरे भगवान, ऎसा लगता है कि आपने इस रचना में एक कमी छोड़ दी है। मैंने कहा था न कि आप इस कृति को ज्यादा ही विलक्षणताएं प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं।" भगवान ने प्रतिरोध किया, "नहीं, यह कोई कमी नहीं है। ये आंसू हैं।"  "ये आंसू किस लिए?" देवदूत ने पूछा। भगवान ने जवाब दिया, "ये आंसू इसका अपनी खुशी, अपना दुख, अपनी निराशा, अपने दर्द, अपने अकेलेपन और यह तक कि अपने गर्व को भी जताने का तरीका होगा।" अब देवदूत काफी प्रभावित था और वह बोला..."भगवान आप महान् हैं, आपने मां को सब कुछ सोचकर बनाया है। आपकी यह कृति सर्वोत्तम है।"  इरमा बॉमबैक
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