प्रेम जीवन का विशुद्ध रस । प्रेम माधुरी जी का सान्निध्य जंहा अमृत के प्याले पिलाए जाते है ।प्रेम माधुर्य वेबसाइट से हमारा प्रयास है कि इस से एक संवेदना जागृत हो ।

Tuesday, January 24

प्रभु तुम और मैं !

कस्तूरी मृग बन मैंने ज़िन्दगी गुजारी
प्रभु तुम तो मेरे अन्दर ही सुवासित रहे !
मैं आरती की थाल लिए
व्यर्थ खड़ी रही
प्रभु तुमतो मेरे सुकून से आह्लादित रहे!
मेरे दुःख के क्षणों में
तुमने सारी दुनिया का भोग अस्वीकार किया,
तुम निराहार मेरी राह बनाने में लगे रहे
और मैं !
भ्रम पालती रही कि -
आख़िर मैंने राह बना ली !
मैं दौड़ लगाती रही,
दीये जलाती रही
- तुम मेरे पैरों की गति में,
बाती बनाती उँगलियों में स्थित रहे !
जब-जब अँधेरा छाया
प्रभु तुम मेरी आंखों में
आस-विश्वास बनकर ढल गए
और नई सुबह की प्रत्याशा लिए
गहरी वेदना में भी
मैं सो गई -
प्रभु लोरी बनकर तुम झंकृत होते रहे !

.............
प्रभु तुमने सुदामा की तरह मुझे अनुग्रहित किया
मुझे मेरे कस्तूरी मन की पहचान दे दी !
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