(1)
राह कठिन कोई नहीं, मन में लो यदि ठान।
परबत भी करते नमन, थम जाते तूफ़ान॥
(2)
जब तक सागर ना मिले, नदी नदी कहलाय।
जिस दिन सागर से मिले, नदी कहाँ रह जाय॥
(3)
हमने तो बस प्रेम से, दी उसको आवाज़।
जग ने देखा चौंक कर, लोग हुए नाराज॥
(4)
प्रेम नहीं सौदा यहां, ना कोई अनुबंध।
प्रेम एक अनुभूति है, जैसे फूल सुगंध॥
(5)
छल, कपट और झूठ से, जो शिखरों पर जाय
जब गिरे वो धरती पे, उठ कभी नहीं पाय॥
(6)
आया कैसा ये समय, जग में देखो यार।
सच्चे को लाहनत मिले, झूठे को जयकार॥
(7)
जिनकी खातिर हम लड़े, जग से सौ-सौ बार।
वो ही करते पीठ पर, छिप कर गहरे वार॥
राह कठिन कोई नहीं, मन में लो यदि ठान।
परबत भी करते नमन, थम जाते तूफ़ान॥
(2)
जब तक सागर ना मिले, नदी नदी कहलाय।
जिस दिन सागर से मिले, नदी कहाँ रह जाय॥
(3)
हमने तो बस प्रेम से, दी उसको आवाज़।
जग ने देखा चौंक कर, लोग हुए नाराज॥
(4)
प्रेम नहीं सौदा यहां, ना कोई अनुबंध।
प्रेम एक अनुभूति है, जैसे फूल सुगंध॥
(5)
छल, कपट और झूठ से, जो शिखरों पर जाय
जब गिरे वो धरती पे, उठ कभी नहीं पाय॥
(6)
आया कैसा ये समय, जग में देखो यार।
सच्चे को लाहनत मिले, झूठे को जयकार॥
(7)
जिनकी खातिर हम लड़े, जग से सौ-सौ बार।
वो ही करते पीठ पर, छिप कर गहरे वार॥
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