श्री सूरदास जी महाराज जिन्हें साक्षात् भगवान के दर्शन होते थे और वो भी जन्मांध होते हुए.. उन्हें भगवान की प्रत्येक लीला और क्रिया स्पस्ट दिखाई देती, जिनमे वो बड़ा ही सुंदर वर्णन करते हुए कह रहे है की... राधा और कृष्ण की भेंट खेल प्रसंग में दिखाई है.....
औचक ही देखी तहं राधा नेन बिसाल भाल दिए रोरी...
(नीले वस्त्रो में वेस्टिथ गोरान्गना राधा की मनोहर छवि पे कृष्ण एकदम ही रीझकर उनसे पूछ उठते है... )
बुझत स्याम कोन तू गोरी !
कहां रहती काकी है छोरी, देखी नहीं कबहूँ ब्रज खोरी!
काहे को हम ब्रज-तन आवतिं, खेलत रहत अपनी पौरी!!
सुनत रहत सत्र्वननी नन्द-ढोटा, करत फिरत माखन-दधि-चोरी!!
तुम्हरो कहा चोरी हम लैहें , खेलन चलो संग मिली जोरी ,
सूरदास प्रभु रसिक-सिरोमणि, बातें भुरइ राधिका भोरी !!
प्रथम मिलन में विमोहित होकर कृष्ण पूछते है कि हे गौरी ! तुम कोन हो? कहाँ रहती हो, किसकी बेटी हो, इससे पहले तो तुम्हे ब्रज गलियों में कभी नहीं देखा!
राधा ने(किंचित मुस्कराते और व्येंग्पूर्ण स्वर में) कहा - हम भला ब्रिज कि इन तंग गलियों में क्यों आएँगी, हम तो अपने ही घर-आँगन में खेलती रहती हैं !
राधा रानी चिड़ाने वाला सा उत्तर देती है कि - हमने अपने कानो से प्राय: यह कहानी सुनती रहती है कि कोई नन्द का नटखट- ढीठ सा बालक है जो प्राय: आती जाती गोपियों का दूध-दही माखन चोरी करता फिरता है ! कृष्ण चोरी का आरोप स्वीकार करते हुए तर्क देते है कि - "राधा! भला हम तुम्हारा क्या चुरा लेंगे ( ये चोरी कि बात छोड़ो ना) चलो साथ जोड़ी बनाकर खेलने चलते हैं ! सूरदास जी कहते है कि कृष्ण इतने रसिक सिरोमणि है कि अपनी रसपूर्ण बातों से उन्होंने भोली-भाली राधा रानी को बहला फुसला लिया !( राधा रानी कृष्ण पर वयंग्य करके मोनो चिढाने आई थी लेकिन स्वयं कृष्ण कि मीठी-मीठी बातों में ऐसी उलझी कि सारा वयंग्य कथन भूल बैठी और कृष्ण कि हाँ में हाँ मिला दी !!
जय जय श्री राधे !!
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