प्रेम जीवन का विशुद्ध रस । प्रेम माधुरी जी का सान्निध्य जंहा अमृत के प्याले पिलाए जाते है ।प्रेम माधुर्य वेबसाइट से हमारा प्रयास है कि इस से एक संवेदना जागृत हो ।

Monday, February 20

माँ







जब आंख खुली तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था...
उसका नन्हा सा अंचल मुझ को भूमंडल से प्यारा था...
उसके चहरे की झलक देख चेहरा फूलो सा खिलता था...
उसके अंचल की एक बूंद से मुझे को जीवन मिलता था....
हाथो से बालो को नोचा...पैरो से खूब प्रहार किया...
फिर भी उस माँ ने पुचकारा हमें जी भर के प्यार किया...
"मै उसका रजा बेटा था..आंख का तारा कहती थी..
मै बनू बुडापे में उसका एक सहारा कहती थी...
उंगली को पकड़ चलाया था पढ़ने विद्यालय भेजा था...
मेरी नादानी को भी निज अंर्तमन में सदा सहेजा था...
मेरे सरे प्रशनो का वो फौरन जवाब बन जाती थी..
मेरे राह के कांटे चुग खुद गुलाब बन जाती थी....
माँ हंसती है तो धरती का जर्रा जर्रा मुस्काता है...
मन मेरे घर के दीवारों में चंदा की सूरत है...
पर मन के इस मंदिर में माँ की मूरत है ...
माँ सरस्वती..लक्ष्मी देवी..अनुसूया सीता है.....
माँ पावनता में राम चरित मानस..भगवत गीता है...
अम्मा मुझे तेरी हर बात वरदान से बड़ कर लगती है...
हे माँ मुझे तेरी सूरत भगवन से बड़ कर लगती है...
सारे तीर्थ के पुण्य जंहा मै उन चरणों में लेटा हूँ...
जिन के कोई संतान नही मै उन माओ का बेटा हूँ....
हर घर में माँ की पूजा हो ऐसा संकल्प उठाता हूँ ...
दुनिया की हर माँ की चरणों में ये शीश झुकाता हूँ..
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