वो फुल ना अबतक चुन पाया
वो फुल ना अबतक चुन पाया
जो फुल चडाने है तुज पर
मैं तेरा द्वार न दूंढ़ सका
साई भटक रहा हूँ डगर डगर
मुज्मे मैं ही दोष रहा होगा
मन तुझको अर्पण कर न सका
तू मुजको देख रहा कबसे
मैं तेरा दर्शन कर न सका
हर दिन हर पल चलता रहता
संग्राम कहीं मन के भीतर
मैं तेरा द्वार...
क्या दुःख क्या सुख क्या भूल मेरी
मैं उल्जा हूँ इन बातो मैं
दिन खोया चांदी सोने मैं
सोया मैं बेसुध रातों मैं
तब ध्यान किया मैंने तेरा
टकराया पग से जब पथ्थर
मैं तेरा द्वार
मैं धुप छाव के बिच कही
माटी के तन को लिए फिरा
उस जगह मुझे थामा तुने
मैं भूल से जिस जगह गिरा
अब तुही पथ दिखला मुजको
सदियों से हूँ घर से बेघर
मैं तेरा द्वार
वो फुल ना अबतक चुन पाया
जो फुल चडाने है तुज पर
मैं तेरा द्वार न दूंढ़ सका
साई भटक रहा हूँ डगर डगर
मुज्मे मैं ही दोष रहा होगा
मन तुझको अर्पण कर न सका
तू मुजको देख रहा कबसे
मैं तेरा दर्शन कर न सका
हर दिन हर पल चलता रहता
संग्राम कहीं मन के भीतर
मैं तेरा द्वार...
क्या दुःख क्या सुख क्या भूल मेरी
मैं उल्जा हूँ इन बातो मैं
दिन खोया चांदी सोने मैं
सोया मैं बेसुध रातों मैं
तब ध्यान किया मैंने तेरा
टकराया पग से जब पथ्थर
मैं तेरा द्वार
मैं धुप छाव के बिच कही
माटी के तन को लिए फिरा
उस जगह मुझे थामा तुने
मैं भूल से जिस जगह गिरा
अब तुही पथ दिखला मुजको
सदियों से हूँ घर से बेघर
मैं तेरा द्वार
0 comments:
Post a Comment