प्रेम जीवन का विशुद्ध रस । प्रेम माधुरी जी का सान्निध्य जंहा अमृत के प्याले पिलाए जाते है ।प्रेम माधुर्य वेबसाइट से हमारा प्रयास है कि इस से एक संवेदना जागृत हो ।

Wednesday, August 22

वो फुल ना अबतक चुन पाया

वो फुल ना अबतक चुन पाया

वो फुल ना अबतक चुन पाया
जो फुल चडाने है तुज पर

मैं तेरा द्वार न दूंढ़ सका
साई भटक रहा हूँ डगर डगर

मुज्मे मैं ही दोष रहा होगा
मन तुझको अर्पण कर न सका

तू मुजको देख रहा कबसे
मैं तेरा दर्शन कर न सका

हर दिन हर पल चलता रहता
संग्राम कहीं मन के भीतर

मैं तेरा द्वार...

क्या दुःख क्या सुख क्या भूल मेरी
मैं उल्जा हूँ इन बातो मैं

दिन खोया चांदी सोने मैं
सोया मैं बेसुध रातों मैं

तब ध्यान किया मैंने तेरा
टकराया पग से जब पथ्थर

मैं तेरा द्वार

मैं धुप छाव के बिच कही
माटी के तन को लिए फिरा

उस जगह मुझे थामा तुने
मैं भूल से जिस जगह गिरा

अब तुही पथ दिखला मुजको
सदियों से हूँ घर से बेघर

मैं तेरा द्वार
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