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Wednesday, August 22

संगीत और प्रकृति

संगीत और प्रकृति
-हेम सिंह
सृष्टि के प्रारम्भ से संगीत हमारे जीवन का अभिन्न अंग रहा है | अगर देखा जाये तो प्रकृति का प्रत्येक तत्व संगीतमय है| कलकल करती नदियां हो या फिर सन्तूर की तान छोड़ते झरने, हवा के संग संग मद मस्त झूमते बाग वन हो या फूलों की खुसबू से मदहोश भवरें और तितलियां, ये सभी संगीत की स्वछंद स्फ्रुतिट स्वर लहरियों पर इतराते नजर आते है| कुछ वैज्ञानिको ने तो यहाँ तक कहा है कि संगीत ही वो विधा है जो हमारे मन मस्तिष्क पर सीधा असर डालती है| संगीत की अब तक की यात्रा पर दृष्टिपात करने से ये बात पूणतः सत्य लगती है|
हमारे यहाँ शास्त्रीय रागों का निर्धारण भी प्रकृति के विविध रंगों के अनुरूप ही किया गया है| प्रभात बेला पर गाये जाने वाले राग अलग हैं और संध्या बेला व रात्रि में गाये जाने वाले राग अलग| महान् संगीतज्ञों द्वारा किया गया रागों का निर्धारण जिस समय के लिय निर्धारित है उससे विपरीत राग को गाने या बजाने पर वो अनुभूति नहीं होती जो उसके निर्धारित काल या समय में मिलती है| इससे स्पष्ट हो जाता है कि संगीत कि प्रकृति प्रकृति से अनुप्राणित है|
संगीत न केवल हमारी जीवन शैली है बल्कि हमारी सम्पूर्ण शक्ति का अनुपम स्रोत भी है| हमारा सम्पूर्ण आध्यात्म किसी न किसी रूप में संगीत पर ही आधारित है| संगीत में अदभुत शक्ति है इसमें अमरत्व सा चमत्कार है| संगीत कि महत्ता को दर्शाते हुये महापुरुषों ने भी कुछ येसा ही कहा है| सादी के अनुसार संगीत क पीछे पीछे खुदा चलता है| जबकि महात्मा गाँधी का कथन है कि मधुर संगीत आत्मा के ताप मन को शान्त कर देता है| प्रसिद्ध विद्वान लांगफेलो का मानना है कि संगीत मानव की विश्व व्यापी भाषा है| यानि संगीत की कोई एक भाषा नहीं, कोई सीमा नहीं| वो हमारी प्रकृति की तरह ही सब पर सामान दृष्टि रखता है| व्यक्ति की आत्मा से निकलता है और आत्मा से जुड़ता है|
संगीत की सहजता, सरलता और उसकी अपार शक्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हमारे यहाँ देवी-देवता भी बिना, मुरली, डमरू तथा वीणा के पुरे नहीं समझे गए हैं, मानव का तो प्रशन ही क्या है | संगीत मानव को ही नहीं अपितु अन्य प्राणियों को भी अपने वश में करने की विशेषता रखता है | संगीत मन को एकाग्र करने में भी बड़ा सहायक शिद्ध होता है | संगीत के माध्यम से आप अपने ईष्ट में बड़ी जल्दी और सुगमता से तन्मय हो सकते है | योगी जन जीवात्मा और परब्रम्ह में की जिस एकता के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन सुखा देता है वह संगीत के माध्यम से सहज ही प्राप्त हो जाता है| क्या जड़ और क्या चेतन संगीत सब पर अपना समान अधिकार रखता है | संगीत की विशेताओं का वर्णन करते हुए कारलाइन ने एक स्थान पर लिखा है कि Music is well said to be speech of angels अर्थात् संगीत को फरिश्तों कि भाषा ठीक ही कहा गया है|
संगीत को एक दैवी कल्पना माना गया है| सामदेव से लेकर आज तक चली आ रही भारतीय संगीत कि अक्षुण्य परंपरा को विश्व मे प्राचीनतम कहा गया है| इसने जाती और धर्म के बंधनों को तोडा है और शायद संगीत हमारे देश की सांस्कृतिक एकता की मजबूत कड़ी रही है| स्वामी हरिदास, अमीर खुसरो जैसे महान संगीतकारों के संगीत साधना पर दृष्टिपात करने से ये स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि भारितीय शास्त्रीय संगीत प्रारंभ से किसी न किसी रूप में प्रकृति अथवा आध्यात्म से ही जुड़ा है और शायद इसीलिय भारितीय शास्त्रीय संगीत आज भी हमारी आत्मा को गहराई से झंकृत करता है|
ऐसी मान्यता है कि तानसेन जैसे सिद्धहस्त संगीतज्ञ अपनी गायकी से प्रकृति के नियमो को भी बदल देते थे जैसे मेघ मल्हार गाकर बारिश करा देना, बिना किसी अग्नि के दीपक जला देना आदि| वैज्ञानिक तर्कों पर इसे आजमाने पर ये बात सामने आती है कि वास्तव में मेघ मल्हार गाने से बारिश नहीं होती थी बल्कि बारिश जैसी अनुभूति होती थी| यदि इस बात को ही सत्य माना जाए तो भी ये अपने में किसी चमत्कार से कम नहीं और ये चमत्कार संगीत और प्रकृति कि साम्यता का ही परिणाम है हाल के वर्षों में संगीत में बहुत सारे प्रयोग हुए हैं इन प्रयोगों में ये बात मुखरित हुई है कि संगीत ही एक मात्र ऐसा माध्यम है जो पृथ्वी पर रहने वाले लगभग प्रत्येक प्राणी को अपने वश में कर सकता है| आज तो संगीत से बीमारिओं का इलाज भी किया जा रहा है| मेरे हिसाब से संगीत एक शास्त्र है, जो बिना योग और कठिन साधना के सिद्ध नहीं हो पाता| जो इसको सिद्ध कर लेता है उससे प्रकृति भी सिद्ध हो जाती है| क्योंकि सच्चा संगीत प्रकृति के विभिन्न रंगों और नियमों से ही प्ररित है फिर वो संगीत चाहे लोक हो अथवा शास्त्रीय|
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