राधे, हे प्रियतमे, प्राण-प्रतिमे, हे मेरी जीवन मूल !
पलभर भी न कभी रह सकता, प्रिये मधुर ! मैं तुमको भूल॥
श्वास-श्वासमें तेरी स्मृतिका नित्य पवित्र स्रोत बहता।
रोम-रोम अति पुलकित तेरा आलिङङ्गन करता रहता॥
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mohan natvar pyaro |
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नेत्र देखते तुझे नित्य ही, सुनते शद मधुर यह कान।
नासा अङङ्ग-सुगन्ध सूँघती, रसना अधर-सुधा-रस-पान॥
अङङ्ग-अङङ्ग शुचि पाते नित ही तेरा प्यारा अङङ्ग-स्पर्श।
नित्य नवीन प्रेम-रस बढ़ता, नित्य नवीन हृदयमें हर्ष॥
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